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अरावली पर्वत श्रृंखला के सूर्यकूट पर्वत पर विराजमान कालकाजी मंदिर के नाम से विख्यात 'कालिका मंदिर' देश के प्राचीनतम सिद्धपीठों में से एक है। जहां नवरात्र में हजारों लोग माता का दर्शन करने पहुंचते हैं। कालका मंदिर की गणना भारत के प्राचीन सिद्धपीठों में होती है।तंत्र साधना की दृष्टि से यह पीठ अनाहतचक्र पर स्थापित हैं। इसे मनोकामना सिद्धपीठ और जयंती काली पीठ भी कहा जाता है। इस पीठ का अस्तित्व अनादि काल से है। माना जाता है कि हर काल में इसका स्वरूप बदला है, इसी जगह आद्यशक्ति माता भगवती 'महाकाली' के रूप में प्रकट हुई और असुरों का संहार किया। तब से यह मनोकामना सिद्धपीठ के रूप में विख्यात है। असुरों द्वारा सताए जाने पर देवताओं ने इसी जगह शिवा (शक्ति) की अराधना की। देवताओं के वरदान मांगने पर मां पार्वती ने कौशिकी देवी को प्रकट किया। जिन्होंने अनेक असुरों का संहार किया लेकिन रक्तबीज को नहीं मार सकीं। तब पार्वती ने अपनी भृकुटी से महाकाली को प्रकट किया और रक्तबीजसुर का वध करने को आदेश दिया । आज्ञा मिलते ही महाकाली ने भयंकर अट्टाहस किया जिस से दशों दिशाएँ गूँज उठी ।  माँ काली ने अपनी शक्तियों और भैरव सहित उस महापराकर्मी असुर का संहार किया और और उसका सारा रक्त पी गई, उसके रक्त की एक भी बूंद जमीन पर गिरने नहीं दी । " मुखेन काली जगृहे रक्तबीजस्य शोणितम्" उसका रक्तपान करने के लिए माँ महाकाली ने अपने मुख का विस्तार किया था । उनके विकराल स्वरूप को देखकर सभी विस्मित और भयभीत हो गए, उस समय महादेव शंकर सहित सभी देवताओं ने आद्याशक्ति माँ महाकाली की स्तुति की तो मां भगवती ने कहा कि जो भी इस स्थान पर श्रृद्धाभाव से पूजा करेगा, उसकी मनोकामना पूर्ण होगी। माना जाता है कि महाभारत काल में युद्ध से पहले भगवान श्रीकृष्ण ने पांडवों के साथ यहां भगवती की अराधना की। बाद में बाबा बालकनाथ ने इस पर्वत पर तपस्या की। तब माता भगवती से उनका साक्षात्कार हुआ। मुख्य मंदिर में 12 द्वार हैं, जो 12 महीनों का संकेत देते हैं। हर द्वार के पास माता के अलग-अलग रूपों का चित्रण किया गया है। मंदिर के परिक्रमा में 36मातृकाओं (हिन्दी वर्णमाला के अक्षर) के द्योतक हैं। माना जाता है कि ग्रहण में सभी ग्रह इनके अधीन होते हैं। इसलिए दुनिया भर के मंदिर ग्रहण के वक्त बंद होते हैं, जबकि कालका मंदिर खुला होता है। मान्यता है कि अष्टमी व नवमी को माता मेला में घूमती हैं। नवरात्र के समय इस मंदिर में श्रद्धालुओं की खासी भीड़ उमड़ती है। लोगों की यहां गहरी आस्था है। उनका मानना है कि यहां दर्शन करने के बाद मां उनकी हर मुराद पूरी कर देती है। इसलिए अष्टमी के दिन सुबह की आरती के बाद कपाट खोल दिया जाता है। दो दिन आरती नहीं होती। दसवीं को आरती होती है। हिन्दू धर्म में सबसे जागृत देवी हैं मां कालिका। मां कालिका को खासतौर पर बंगाल और असम में पूजा जाता है। 'काली' शब्द का अर्थ काल और काले रंग से है। 'काल' का अर्थ समय। मां काली को देवी दुर्गा की 10 महाविद्याओं में से एक माना जाता है। कालिका के दरबार में जो एक बार चला जाता है उसका नाम-पता दर्ज हो जाता है। यहां यदि दान मिलता है तो दंड भी। आशीर्वाद मिलता है तो शाप भी। यदि आप कालिका के दरबार में जो भी वादा करने आएं, उसे पूरा जरूर करें। जो भी मन्नत के बदले को करने का वचन दें, उसे पूरा जरूर करें अन्यथा कालिका माता रुष्ट हो सकती हैं। जो एकनिष्ठ, सत्यवादी और वचन का पक्का है समझो उसका काम भी तुरंत होगा। कालिका माता के विषय में कहा जाता है कि यह दुष्टों के बाल पकड़कर खड्ग से उसका सिर काट देती हैं। रक्तबीज से युद्घ करते समय मां काली ने भी इसी प्रकार से रक्तबीज का वध किया था। माता काली की पूजा या भक्ति करने वालों को माता सभी तरह से निर्भीक और सुखी बना देती हैं। वे अपने भक्तों को सभी तरह की परेशानियों से बचाती हैं।
जय माँ आद्याशक्ति महाकली महारानी जी की ।
जय माई की ।
कोई गलती या त्रुटि हो गई हो, माँ की कथा या इतिहास बताने मे तो क्षमा प्रार्थी हु भाइयो ।
!!! जय माई की !!!

Aashish Jaiswal
Written by Aashish Jaiswal

Aenean quis feugiat elit. Quisque ultricies sollicitudin ante ut venenatis. Nulla dapibus placerat faucibus. Aenean quis leo non neque ultrices scelerisque. Nullam nec vulputate velit. Etiam fermentum turpis at magna tristique interdum.